शीर्षक -- बुढ़ऊ
मेरे गांव में उस बुजुर्ग आदमी को लोग बूढ़ऊ कहते हैं परंतु मैं उन्हें बुढ़ऊ कहने से बहुत संकोचता था ।इसलिए कि गांव में बहुत से लोग बूढ़े हैं तो उन्हें लोग बुढ़ऊ क्यों नहीं कहते हैं इन्हें क्या गरीब जान कर कहते हैं। बताइए बूढा तो सबको होना है गांव के अन्य बूढों को लोग बाबा ,बड़का जी, बाबूजी, दादा, इत्यादि लहजे में बुलाते थे ,परंतु उस इकलौते शख्स को बुढ़ऊ कहना मुझे उचित नहीं लगता था ।
एक बार मैं गांव के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बुढ़ऊ को बुढ़ऊ कहकर बुलाते करीब से देखा और सुना तो यह एहसास हुआ कि बुढ़ऊ इस संबोधन से खुश रहते हैं ।
एक दिन मेरे पिताजी ने बुढ़ऊ को हमारे घर पर किसी काम से बुलाया तब मेरी भी बात उस दिन से उन से होने लगी मेरे पिताजी उन्हें गमहा कहकर बुलाते थे तब मैंने पिताजी से गमहा का अर्थ जाना " गमहा का मतलब -गांव का आदमी " पिताजी ने बताया तब मुझे एहसास हुआ कि कितना प्यार होता है संबोधन में !
मेरे पिताजी अक्सर बचपन में मुझे यही सिखाया करते थे कि किसी को भी ,"जी ,,लगाकर बोलना है जैसे पापा जी ;मम्मी जी ;भैया जी; चाचा जी ;वह तो हर किसी के नाम के आगे भी "जी "लगाकर कहने को कहते हैं इसके साथ ही अगर कोई बुलाए तो भी" हां जी "कहकर हामी जताने की बात सिखाते हैं । शायद यही सीख मुझे बचपन में बुढ़ऊ को बुढ़ऊ नहीं कहने देती थी ।परंतु प्यार का एक अलग ही एहसास होता है संबोधन में !जहां अपनत्व और ममता होता है वहां जी का संबोधन कई जगहों पर महत्वहीन हो जाता है। जैसे अम्मा रे ,माई रे, मम्मी रे ,इन्हीं प्यार के बीच शायद गांव के सभी बच्चे ,बड़े एवं बुजुर्ग बुढ़ऊ को सिर्फ बुढ़ऊ पुकारा करते हैं।
बुढ़ऊ की भाषा भी बहुत ही प्यारी है अब उनसे जब मुलाकात होती है तो बात भी होती है। बुढ़ऊ एक कार्य के लिए पूरे गांव में प्रसिद्ध है वह यह की किसी चीज की जानकारी पूरे गांव में देनी है तो वह बुढ़ऊ के माध्यम से दी जाती है वह ऐसे की बुढ़ऊ एक ढोलक लेकर पूरे गांव में ढोलक पीटते हुए उस बात को कहते हुए गांव में घूम जाते हैं । और उस ढोल की आवाज सुनकर सभी लोग उस सूचना को ध्यान से सुनते हैं और उस जानकारी से अवगत कराते हैं जैसे कि अगर सभी ग्राम वासियों को गांव में नहर में पानी आने की सूचना देना हो तो बुढ़ऊ ढोलक लेकर शाम के समय यह जानकारी सभी ग्राम वासियों को देते हैं और अगली सुबह उस नहर को बांधने और सिंचाई कार्य करने का कार्य सभी ग्रामवासी मिलकर करते हैं यह बड़ों की जानकारी पहुंचाने की डुगडुगी विधि है ।
आज के इस टेक्नोलॉजी के जमाने में बुढ़ऊ के इस डुग डुगी विधि का लोग सहारा लेते हैं।बुढ़ऊ की प्रासंगिकता /उपयोगिता हमारे गांव के इतिहास में दर्ज करने हेतु मेरी कलम खुद को रोक नहीं पाई ।।
लेखक
सैयद जाबिर हुसैन
मेरे गांव में उस बुजुर्ग आदमी को लोग बूढ़ऊ कहते हैं परंतु मैं उन्हें बुढ़ऊ कहने से बहुत संकोचता था ।इसलिए कि गांव में बहुत से लोग बूढ़े हैं तो उन्हें लोग बुढ़ऊ क्यों नहीं कहते हैं इन्हें क्या गरीब जान कर कहते हैं। बताइए बूढा तो सबको होना है गांव के अन्य बूढों को लोग बाबा ,बड़का जी, बाबूजी, दादा, इत्यादि लहजे में बुलाते थे ,परंतु उस इकलौते शख्स को बुढ़ऊ कहना मुझे उचित नहीं लगता था ।
एक बार मैं गांव के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बुढ़ऊ को बुढ़ऊ कहकर बुलाते करीब से देखा और सुना तो यह एहसास हुआ कि बुढ़ऊ इस संबोधन से खुश रहते हैं ।
एक दिन मेरे पिताजी ने बुढ़ऊ को हमारे घर पर किसी काम से बुलाया तब मेरी भी बात उस दिन से उन से होने लगी मेरे पिताजी उन्हें गमहा कहकर बुलाते थे तब मैंने पिताजी से गमहा का अर्थ जाना " गमहा का मतलब -गांव का आदमी " पिताजी ने बताया तब मुझे एहसास हुआ कि कितना प्यार होता है संबोधन में !
मेरे पिताजी अक्सर बचपन में मुझे यही सिखाया करते थे कि किसी को भी ,"जी ,,लगाकर बोलना है जैसे पापा जी ;मम्मी जी ;भैया जी; चाचा जी ;वह तो हर किसी के नाम के आगे भी "जी "लगाकर कहने को कहते हैं इसके साथ ही अगर कोई बुलाए तो भी" हां जी "कहकर हामी जताने की बात सिखाते हैं । शायद यही सीख मुझे बचपन में बुढ़ऊ को बुढ़ऊ नहीं कहने देती थी ।परंतु प्यार का एक अलग ही एहसास होता है संबोधन में !जहां अपनत्व और ममता होता है वहां जी का संबोधन कई जगहों पर महत्वहीन हो जाता है। जैसे अम्मा रे ,माई रे, मम्मी रे ,इन्हीं प्यार के बीच शायद गांव के सभी बच्चे ,बड़े एवं बुजुर्ग बुढ़ऊ को सिर्फ बुढ़ऊ पुकारा करते हैं।
बुढ़ऊ की भाषा भी बहुत ही प्यारी है अब उनसे जब मुलाकात होती है तो बात भी होती है। बुढ़ऊ एक कार्य के लिए पूरे गांव में प्रसिद्ध है वह यह की किसी चीज की जानकारी पूरे गांव में देनी है तो वह बुढ़ऊ के माध्यम से दी जाती है वह ऐसे की बुढ़ऊ एक ढोलक लेकर पूरे गांव में ढोलक पीटते हुए उस बात को कहते हुए गांव में घूम जाते हैं । और उस ढोल की आवाज सुनकर सभी लोग उस सूचना को ध्यान से सुनते हैं और उस जानकारी से अवगत कराते हैं जैसे कि अगर सभी ग्राम वासियों को गांव में नहर में पानी आने की सूचना देना हो तो बुढ़ऊ ढोलक लेकर शाम के समय यह जानकारी सभी ग्राम वासियों को देते हैं और अगली सुबह उस नहर को बांधने और सिंचाई कार्य करने का कार्य सभी ग्रामवासी मिलकर करते हैं यह बड़ों की जानकारी पहुंचाने की डुगडुगी विधि है ।
आज के इस टेक्नोलॉजी के जमाने में बुढ़ऊ के इस डुग डुगी विधि का लोग सहारा लेते हैं।बुढ़ऊ की प्रासंगिकता /उपयोगिता हमारे गांव के इतिहास में दर्ज करने हेतु मेरी कलम खुद को रोक नहीं पाई ।।
लेखक
सैयद जाबिर हुसैन
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