Monday, May 3, 2021

संख्याओं की कहानी


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कहानी किसे अच्छी नहीं  लगती , इसकी रोचकता किसी को भी अपने आप में बांधे रखती है।


             अगर गणित पढ़ने से पहले उसके बारे में उससे संबंधित कुछ कहानी बता दी जाए तो बात ही कुछ और होगी। नई शिक्षा नीति में भी यह बात सामने आती है कि बच्चों को उनके परिवेश से जोड़कर बहुत सी बातों को उन्हें सिखाया और बताया जा सकता है। जो उनके लिए काफी अधिगम युक्त पहलू होगा ।


        कुछ इसी तरह की बातें जो पहली  वर्ग से लेकर के 8 वीं वर्ग तक गणित विषय की शुरुआत संख्या से होती है उस संख्या के पीछे भी कुछ इसी तरह की कहानी है जिसे हम बच्चों को बता कर काफी हद तक संख्याओं  के अध्याय को रुचिकर बना सकते हैं ।हम अपने दैनिक जीवन में विभिन्न अवसरों और स्थितियों पर संख्याओं का प्रयोग करते हैं ।प्राचीन काल में मनुष्य गिनना नहीं जानता था किंतु उसे अपनी व्यक्तिगत संपत्ति जैसे मवेशी, पेड़ों आदि का हिसाब रखना पड़ता था। इसके लिए उसे उन चिन्हों पर निर्भर रहना पढ़ता था ,जो वह किसी लकड़ी पर, दांतो के रूप में ,अथवा डोरी में धातु के रूप में, इत्यादि द्वारा अंकित करता था। एक  प्रकार से ऐसा करने में वह अपनी संपत्ति की वस्तुओं और उन चिन्हों के बीच एक एक संगति स्थापित करता था, ताकि वह इन वस्तुओं का हिसाब रख सके कुछ समय पश्चात हिसाब किताब का ब्यौरा रखने के लिए एक और अच्छी पद्धति का अविष्कार करने की आवश्यकता अनुभव की गई, जिसके फल स्वरुप संख्याओं की खोज प्रारंभ हुई तथा विभिन्न देशों ने अपनी-अपनी पद्धतियां विकसित की जिन्हें गिनना कहते हैं ।


         शुरुआत होती है मिस्र से , यहां की  पद्धति के बारे में हम बात करें तो उनकी पद्धति मकबरा और स्मृति स्तंभों के शिलालेखों में मिलती है यह लगभग 5000 वर्ष पुरानी है इस पद्धति में मूल संग्रह 10 लिया गया किंतु 10 के  घातांको लिए भिन्न संकेतों का प्रयोग किया गया 10 को एड़ी की हड्डी से निरूपित किया गया, 100 को लिपटी हुए कागज का मुठ्ठा के संकेत से निर्मित किया गया , इत्यादि ।दूसरी तरफ रोमन पद्धति का विकास हुआ रोम में जिसमें बड़ी संख्या को विशेष संकेतों से बिना स्थानीय मान की संकल्पना की निरूपित किया गया ।इसमें एक को I  से पांच को V से 10 को X से 50 को L से 100 को C  से 500 को D से तथा 1000 को M से  निरूपित किया गया ।बड़ी संकेत की बाई ओर छोटा संकेत व्यवकलन और दाएं ओर छोटा संकेत योग व्यक्त करता था।


            इसके बाद ईसा मसीह से लगभग 300 वर्ष पूर्व तक प्राचीन भारतीयों ने संख्याओं का एक संग्रह विकसित किया जो ब्रह्म संख्यान कहा जाता है किंतु इसमें ना तो शून्य के लिए संख्यांक  था और न ही स्थानीय मान का उपयोग किया गया था।  खगोल शास्त्री आर्यभट्ट के एक शिष्य भास्कर ने ईसा मसीह के करीब 500 वर्ष बाद स्थानीय मान पद्धति का प्रयोग किया जिसमें शून्य के लिए भी शंख्यांक था ।आज की तरह दाएं और न होकर इस पद्धति में इकाई स्थान बाई और था इसमें शीघ्र ही परिवर्तन हुआ और धीरे-धीरे वर्तमान  अरबी अंकन पद्धति विकसित हुई जो पूर्णता वैज्ञानिक है इसका लेखन और पठन बहुत सुविधाजनक है तथा इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है संसार के अधिकतर देश इसी विधि को प्रयोग करते हैं ।


           इसके साथ यह बता देना भी सर्वदा उचित होगा कि जैसा नाम से विदित होता है हिंदू अरबी अंकन पद्धति का विकास भारत वर्ष में हुआ  अरब निवासियों ने इसे ग्रहण करके इसके शंख्यांको में कुछ सुधार किए। यूरोप निवासियों ने अरब निवासियों से इसे उत्तराधिकार में यह शंख्याक संशोधित रूप में प्राप्त किए ।


        इस पद्धति में 10 संख्याओं 0,1,2,3,4,5,6,7,8,9 का प्रयोग होता है कोई भी संख्या चाहे वह कितनी भी बड़ी क्यों ना हो इन अंको की सहायता से स्थानीय मान के सिद्धांत का प्रयोग करके लिखी जा सकती है ।


    इस पद्धति के दो विलक्षण गुण हैं जो इसे अन्य पद्धतियों से श्रेष्ठ बनाते हैं प्रथम संख्या 10 का शामिल करना जो किसी राशि की अनुपस्थिति प्रदर्शित करता है इसके द्वारा ही स्थानीय मान के सिद्धांत का प्रयोग हो सका द्वितीय इसकी द्वारा चार मौलिक संक्रियाएं करने संबंधित सरल नियमों का विकास संभव हो सका क्योंकि इस पद्धति में 10 संख्याओं को 10 के समूह में व्यवस्थित करके बड़ी से बड़ी संख्या व्यक्त की जा सकती है अतः इसे आधार 10 अथवा दशमलव अंकन पद्धति भी कहते हैं।। 


तो यह था संख्याओं का इतिहास संख्याओं की कहानी जिसे आज हम संख्याओं को कई रूपों में पढ़ते और अध्ययन करते हैं।




सैयद जाबिर हुसैन 

        शिक्षक 

Wednesday, April 29, 2020

प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी का आगमन



विद्यालय में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के आगमन के बाद सभी शिक्षक चौकन्ना हो गए। हड़बड़ का माहौल हो गया ,BEO  साहब आ गए ,BEO साहब आ गए :::शिक्षकों के बीच में सुगबुगाहट मनों हलचल में बदल गई  हो।मुझे अपने गुरु की एक बात ,जो उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान कही थी सदैव याद रहता है कि" विद्यालय जांच के क्रम में अगर कोई पदाधिकारी आता है तो वह हमारे बेहतरी की ही बात करता है इसलिए हमें उनके आगमन पर हतोत्साहित न होकर उत्साहित होना चाहिए एवं मार्गदर्शन कि उम्मीद करना चाहिए ।"
मुझे प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के स्वभाव के बारे में पता था,वह बहुत ही प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। मैंने सभी शिक्षकों को शांत रहने के लिए कहा ,मैं जानता था कि वो प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी बी शांत स्वभाव के व्यक्तित्व हैं वह अनुशासन को ज्यादा से ज्यादा पसंद करते हैं। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए अपने शिक्षक साथियों को अपना कार्य यथावत करने को कहा ।उस समय मध्याह्न का समय था तथा बीईओ साहब सीधे विद्यालय के कार्यालय में आए, आगमन के उपरांत ही अभिवादन के साथ वह कार्यालय में अपना स्थान ग्रहण किए उनको विद्यालय की विधि व्यवस्था अच्छी लगी उनके चेहरे से यह बात पता चल रही थी। उनके पास समय बहुत कम था उन्हें नजदीक के कई विद्यालय में भी जाना था इसलिए वह हमारे कहने पर भी मध्याह्न भोजन नहीं चख पाए। नए सत्र का प्रारंभ था इसलिए वह ज्यादा कुछ बच्चों की उपस्थिति पर भी नहीं बोले। वह हम सभी शिक्षकों से एक प्रश्न पूछें वह यह था कि अगर, नए बच्चे नामांकित होने के उपरांत उन्हें वर्ग कक्ष में या विद्यालय में नया-नया आने में अच्छा नहीं लगता होगा इसके लिए आप लोग क्या करते हैं? हमारे सामने यह प्रश्न कौतूहल भरा अवश्य था, परंतु कठिन कदापि नहीं था। क्योंकि हमारा विद्यालय नवाचार के लिए अपने संकुल में प्रसिद्ध था। झट से विद्यालय के कई शिक्षकों की तरफ से मैंने प्रश्न का जवाब देना शुरू किया मैंने कहा कि विद्यालय के नए नामांकित बच्चों के लिए हम मुख्य रूप से तीन बातों का ख्याल रखते हैं जिसमें पहली बात नए बच्चों का स्वागत किया जाता है वह स्वागत वर्ग कक्ष में ताली बजाकर या फूलों की माला अगर हो तो ठीक है अन्यथा कागज की भी माला पहनाकर किया जाता है यह कार्य हम चेतना सत्र में भी करते हैं वह ऐसे की सभी नए नामांकित बच्चों को आगे करके सभी बच्चों द्वारा उनसे कतार बद्ध बच्चों के सामने उनके स्वयं द्वारा परिचय दिलवाकर और विद्यालय के  समस्त बच्चों द्वारा ताली बजाकर आकर्षित और स्वागत का भाव दर्शाया जाता है ।

दूसरी चीज की नए नामांकित बच्चों के सर पर हाथ फेर कर उनके साथ अपनापन होने का एहसास कराया जाता है ताकि उन्हें विद्यालय में भी एक अभिभावक की अनुभूति हो, और वह विद्यालय के साथ-साथ वर्ग कक्ष एवं अध्ययन से जुड़ सकें।

 तीसरी चीज हम सभी शिक्षक ध्यान रखते हैं कि वैसे विद्यार्थियों को वर्ग कक्ष में एक खास किस्म की स्वतंत्रता दी जाती है जिससे छात्र-छात्राओं को घुलने मिलने का भरपूर मौका मिल सके। ।

 यह जवाब सुनते ही वो साहब मन ही मन प्रफुल्लित हुए एवं हम लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए नजदीक के  विद्यालय की तरफ प्रस्थान कर गए ।।


सैयद जाबिर हुसैन
शिक्षक 

Sunday, April 26, 2020

मोहित और उसके साथी

शीर्षक -  मोहित और उसके साथी

आज इस लॉक डाउन में अनायास ही मेरे विद्यालय के दूसरी कक्षा के छात्र मोहित और उसके साथियों की याद आ गई  । शिक्षक बनने के उपरांत विद्यालय में पहला दिन था बच्चों की उपस्थिति लगाने के उपरांत बच्चों से मैंने खूब बातें की । बातचीत के दौरान विद्यालय के बहुत से हालातों की जानकारी बच्चों के माध्यम से मिली, इसी क्रम में यह बात भी पता चला कि मोहित  और उसके दो और मित्र बजरंगी और संदीप प्रतिदिन विद्यालय नहीं आते है ।मैंने इसकी वजह पता किया तो पता चला कि वह मुंशी गुरुजी से डरते  है, कि वह आयेगे तो  उन्हें  वह मारेंगे ।मैंने एक योजना बनाई मैंने  गुरुजी से बातचीत की और मोहित और उसके साथियों को उसके घर से बाल संसद के सदस्यों द्वारा बुलवाया पर वो नहीं आए ।  विद्यालय की अन्य कार्यों को करते करते तीन दिन और  बीत गए पुनः मोहित और उसके साथी बजरंगी और संदीप  का ध्यान आया तो मैंने बाल संसद के दो  सदस्यों को साथ में लेकर गांव का भ्रमण किया और उन छात्रों के घर पर भी गया , वहां उन बच्चों के अभिभावक खुश हुए और अगले दिन उन्हें विद्यालय आने का आश्वासन दिए । फिर क्या था नए वाले  गुरुजी के नाम पर मोहित के पापा मोहित और उसके मित्रों को  लेकर विद्यालय आए। योजना के अनुसार हम दोनों शिक्षक मोहित ,बजरंगी और संदीप  से  बहुत ही प्यार से बातचीत की और उनसे  विद्यालय में विगत कुछ दिनों में हुए नए कार्यो से अवगत कराएं मैंने उनसे  कहा देखो मोहित ,बजरंगी और संदीप हम शिक्षक और विद्यालय के सभी बच्चे विभिन्न प्रकार के  सुंदर चित्र बनाकर एक खाली तेल के टीन वाले डब्बे पर चिपका कर एक कूड़ेदान का निर्माण किए है, अब सभी अपने फटे  कागज या विद्यालय के कूड़े को इस कूड़ेदान में डालते हैं और जब से में आया हूं बहुत सारे कार्यों को करने की सोचा हूं ,जिसमे तुम लोगों की  भी भागेदारी जरूरी है,इसके अलावा अब  किसी बच्चे की पिटाई भी नहीं हो रही है। मैंने सभी बच्चों से वर्ग कच्छ में ही पूछा -- क्या किसी की पिटाई होती है ?  सभी बच्चे ने एक स्वर में कहा ,नहीं ।मोहित और उसके साथी  प्रतिदिन विद्यालय आने के लिए वर्ग कक्ष में ही वादा किए  और अपनी खुशी जाहिर की मैंने सभी बच्चों से मोहित और उसके साथियों  के लिए जोरदार तालियां बजवाई और इस दौरान मोहित के पिता भी खुश हुए कुछ दिनों बाद अगले बाल संसद के पुनर्गठन में मोहित बाल संसद का सक्रिय सदस्य बना और वह और उसके साथी बजरंगी और संदीप  विद्यालय में अनुपस्थित भी नहीं हुए ।

सैयद जाबिर हुसैन
शिक्षक

Tuesday, April 21, 2020

बुढ़ऊ

शीर्षक -- बुढ़ऊ

मेरे गांव में उस बुजुर्ग आदमी को लोग बूढ़ऊ कहते हैं परंतु मैं उन्हें बुढ़ऊ कहने से बहुत संकोचता  था ।इसलिए कि गांव में बहुत से लोग बूढ़े हैं तो उन्हें  लोग बुढ़ऊ  क्यों नहीं कहते हैं इन्हें क्या गरीब जान कर कहते हैं। बताइए बूढा तो सबको होना है गांव के अन्य बूढों को लोग बाबा ,बड़का जी, बाबूजी, दादा, इत्यादि लहजे में बुलाते थे ,परंतु उस इकलौते शख्स को बुढ़ऊ कहना मुझे उचित नहीं लगता था ।
एक बार मैं गांव के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बुढ़ऊ को बुढ़ऊ कहकर बुलाते करीब से देखा और सुना तो यह एहसास हुआ कि बुढ़ऊ इस संबोधन से खुश रहते हैं ।
एक दिन मेरे पिताजी ने बुढ़ऊ को हमारे घर पर किसी काम से बुलाया तब मेरी भी बात उस दिन से उन से होने लगी मेरे पिताजी उन्हें गमहा  कहकर बुलाते थे तब मैंने पिताजी से गमहा  का अर्थ जाना " गमहा का मतलब -गांव का आदमी " पिताजी ने बताया तब मुझे एहसास हुआ कि कितना प्यार होता है संबोधन में !

 मेरे पिताजी अक्सर बचपन में मुझे यही सिखाया करते थे कि किसी को भी ,"जी ,,लगाकर बोलना है जैसे पापा जी ;मम्मी जी ;भैया जी; चाचा जी ;वह  तो हर किसी के नाम के आगे भी "जी "लगाकर कहने को कहते हैं इसके साथ ही अगर कोई बुलाए तो भी" हां जी "कहकर  हामी जताने की बात सिखाते हैं । शायद यही सीख मुझे बचपन में बुढ़ऊ को  बुढ़ऊ नहीं कहने देती थी ।परंतु प्यार का एक अलग ही एहसास होता है संबोधन में !जहां अपनत्व  और ममता होता  है वहां जी का संबोधन कई जगहों पर महत्वहीन हो जाता है। जैसे अम्मा रे ,माई रे, मम्मी रे ,इन्हीं प्यार के बीच शायद गांव के सभी बच्चे ,बड़े एवं बुजुर्ग  बुढ़ऊ को  सिर्फ  बुढ़ऊ पुकारा करते हैं।

 बुढ़ऊ की  भाषा भी बहुत ही प्यारी है अब उनसे जब मुलाकात होती है तो बात भी होती है।  बुढ़ऊ एक  कार्य के लिए पूरे गांव में प्रसिद्ध है वह यह की  किसी चीज की जानकारी पूरे गांव में देनी है तो वह बुढ़ऊ के  माध्यम से दी जाती है वह ऐसे की  बुढ़ऊ एक  ढोलक  लेकर पूरे गांव में ढोलक पीटते हुए उस बात को कहते हुए गांव में घूम जाते हैं । और उस ढोल की आवाज सुनकर सभी लोग उस सूचना को ध्यान से सुनते हैं और उस जानकारी से  अवगत कराते हैं जैसे कि अगर सभी ग्राम वासियों को गांव में नहर में पानी आने की सूचना देना हो तो बुढ़ऊ ढोलक लेकर शाम के समय यह जानकारी सभी ग्राम वासियों को देते हैं और अगली सुबह उस नहर को बांधने और सिंचाई कार्य करने का कार्य सभी ग्रामवासी मिलकर करते हैं यह बड़ों की जानकारी पहुंचाने की डुगडुगी विधि है ।
आज  के इस टेक्नोलॉजी के जमाने में बुढ़ऊ के इस डुग डुगी  विधि का लोग सहारा  लेते हैं।बुढ़ऊ की  प्रासंगिकता /उपयोगिता हमारे गांव के इतिहास में दर्ज करने हेतु मेरी कलम खुद को रोक नहीं  पाई ।।

लेखक

सैयद जाबिर हुसैन

Thursday, October 24, 2019

उस नवजात के लिए ।

"भाई साहब पेपर दीजियेगा हवा झेलना है ।"यह पहली बार किसी ने इस तरह से कहा ,अक्सर लोग पेपर पढ़ने के लिए मांगते हैं ,हवा करने के लिए............। मैंने सोचा भी न था । बस में भीड़ काफी थी , गर्मी भी उतनी हीं । मैं एक हाथ से पसीना पोछते हुए दुसरे हाथ से पेपर पकड़ा दिया । सोचा था बस में बैठने के बाद उस पेपर को पढुगा ,परन्तु आज ऐसा नहीं हुआ सीट तो मिल गई परंतु पेपर पढ़ने का स्वाद नहीं मिला । यह सोचता रहा कि हद है उसने पेपर हवा करने के लिए मांग लिया , मैंने अपने आप को देखा , नहाया धोया अच्छा ही लग रहा हू ,फिर भी ऐसा क्या दिखा मुझमें । मेरा बस स्टाप आ चुका था ।अब मैं उतरने वाला था अब तक पेपर नहीं दिया उसने मन में सोचते हुए खड़ा हुआ । मैं देख कर स्तब्ध रह गया ,उस शख्स के बगल में बैठी उस मां को जो अपने नवजात को पेपर से हवा कर रही थीं ।मैं नि :शब्द होकर चुपचाप बस से उतर गया ,और अपने गंतव्य की ओर चला गया ।



सैयद जाबिर हुसैन
शिक्षक
7250581901

Sunday, January 4, 2009

अतंकवादियों का कोई धर्म नहीं

भारत के मुसलमानो को आखिर कब तक बफादारी का सर्टिफिकेट देना पड़ेगा ? प्रत्येक भारतीय मुसलमान गंगा -जमुना के पानी से वज़ू करके अपने आप को पाक समझता है , यही नहीं ,जब यह पानी नहीं मिलता तो वह हिन्दुस्तान की ज़मीन को छूकर करके अपने बदन पर मलकर खुद को पाक मानते हैं इसके बावज़ूद इस्लाम धर्म से ज़ुड़े तमाम लोगो को हमेशा शक के निगाह से देखा जाता हैं..आतंकवाद को किसी धर्म तथा क्षेत्र से जोड़कर देखने वाले और ऐसी बातो को हवा देने वाले यह क्यौ भूल रहे हैं कि आतंकवादियो का कोई धर्म नहीं होता

सैयद ज़ाबिर हुसैन 

संख्याओं की कहानी

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