Wednesday, April 29, 2020

प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी का आगमन



विद्यालय में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के आगमन के बाद सभी शिक्षक चौकन्ना हो गए। हड़बड़ का माहौल हो गया ,BEO  साहब आ गए ,BEO साहब आ गए :::शिक्षकों के बीच में सुगबुगाहट मनों हलचल में बदल गई  हो।मुझे अपने गुरु की एक बात ,जो उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान कही थी सदैव याद रहता है कि" विद्यालय जांच के क्रम में अगर कोई पदाधिकारी आता है तो वह हमारे बेहतरी की ही बात करता है इसलिए हमें उनके आगमन पर हतोत्साहित न होकर उत्साहित होना चाहिए एवं मार्गदर्शन कि उम्मीद करना चाहिए ।"
मुझे प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी के स्वभाव के बारे में पता था,वह बहुत ही प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। मैंने सभी शिक्षकों को शांत रहने के लिए कहा ,मैं जानता था कि वो प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी बी शांत स्वभाव के व्यक्तित्व हैं वह अनुशासन को ज्यादा से ज्यादा पसंद करते हैं। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए अपने शिक्षक साथियों को अपना कार्य यथावत करने को कहा ।उस समय मध्याह्न का समय था तथा बीईओ साहब सीधे विद्यालय के कार्यालय में आए, आगमन के उपरांत ही अभिवादन के साथ वह कार्यालय में अपना स्थान ग्रहण किए उनको विद्यालय की विधि व्यवस्था अच्छी लगी उनके चेहरे से यह बात पता चल रही थी। उनके पास समय बहुत कम था उन्हें नजदीक के कई विद्यालय में भी जाना था इसलिए वह हमारे कहने पर भी मध्याह्न भोजन नहीं चख पाए। नए सत्र का प्रारंभ था इसलिए वह ज्यादा कुछ बच्चों की उपस्थिति पर भी नहीं बोले। वह हम सभी शिक्षकों से एक प्रश्न पूछें वह यह था कि अगर, नए बच्चे नामांकित होने के उपरांत उन्हें वर्ग कक्ष में या विद्यालय में नया-नया आने में अच्छा नहीं लगता होगा इसके लिए आप लोग क्या करते हैं? हमारे सामने यह प्रश्न कौतूहल भरा अवश्य था, परंतु कठिन कदापि नहीं था। क्योंकि हमारा विद्यालय नवाचार के लिए अपने संकुल में प्रसिद्ध था। झट से विद्यालय के कई शिक्षकों की तरफ से मैंने प्रश्न का जवाब देना शुरू किया मैंने कहा कि विद्यालय के नए नामांकित बच्चों के लिए हम मुख्य रूप से तीन बातों का ख्याल रखते हैं जिसमें पहली बात नए बच्चों का स्वागत किया जाता है वह स्वागत वर्ग कक्ष में ताली बजाकर या फूलों की माला अगर हो तो ठीक है अन्यथा कागज की भी माला पहनाकर किया जाता है यह कार्य हम चेतना सत्र में भी करते हैं वह ऐसे की सभी नए नामांकित बच्चों को आगे करके सभी बच्चों द्वारा उनसे कतार बद्ध बच्चों के सामने उनके स्वयं द्वारा परिचय दिलवाकर और विद्यालय के  समस्त बच्चों द्वारा ताली बजाकर आकर्षित और स्वागत का भाव दर्शाया जाता है ।

दूसरी चीज की नए नामांकित बच्चों के सर पर हाथ फेर कर उनके साथ अपनापन होने का एहसास कराया जाता है ताकि उन्हें विद्यालय में भी एक अभिभावक की अनुभूति हो, और वह विद्यालय के साथ-साथ वर्ग कक्ष एवं अध्ययन से जुड़ सकें।

 तीसरी चीज हम सभी शिक्षक ध्यान रखते हैं कि वैसे विद्यार्थियों को वर्ग कक्ष में एक खास किस्म की स्वतंत्रता दी जाती है जिससे छात्र-छात्राओं को घुलने मिलने का भरपूर मौका मिल सके। ।

 यह जवाब सुनते ही वो साहब मन ही मन प्रफुल्लित हुए एवं हम लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए नजदीक के  विद्यालय की तरफ प्रस्थान कर गए ।।


सैयद जाबिर हुसैन
शिक्षक 

Sunday, April 26, 2020

मोहित और उसके साथी

शीर्षक -  मोहित और उसके साथी

आज इस लॉक डाउन में अनायास ही मेरे विद्यालय के दूसरी कक्षा के छात्र मोहित और उसके साथियों की याद आ गई  । शिक्षक बनने के उपरांत विद्यालय में पहला दिन था बच्चों की उपस्थिति लगाने के उपरांत बच्चों से मैंने खूब बातें की । बातचीत के दौरान विद्यालय के बहुत से हालातों की जानकारी बच्चों के माध्यम से मिली, इसी क्रम में यह बात भी पता चला कि मोहित  और उसके दो और मित्र बजरंगी और संदीप प्रतिदिन विद्यालय नहीं आते है ।मैंने इसकी वजह पता किया तो पता चला कि वह मुंशी गुरुजी से डरते  है, कि वह आयेगे तो  उन्हें  वह मारेंगे ।मैंने एक योजना बनाई मैंने  गुरुजी से बातचीत की और मोहित और उसके साथियों को उसके घर से बाल संसद के सदस्यों द्वारा बुलवाया पर वो नहीं आए ।  विद्यालय की अन्य कार्यों को करते करते तीन दिन और  बीत गए पुनः मोहित और उसके साथी बजरंगी और संदीप  का ध्यान आया तो मैंने बाल संसद के दो  सदस्यों को साथ में लेकर गांव का भ्रमण किया और उन छात्रों के घर पर भी गया , वहां उन बच्चों के अभिभावक खुश हुए और अगले दिन उन्हें विद्यालय आने का आश्वासन दिए । फिर क्या था नए वाले  गुरुजी के नाम पर मोहित के पापा मोहित और उसके मित्रों को  लेकर विद्यालय आए। योजना के अनुसार हम दोनों शिक्षक मोहित ,बजरंगी और संदीप  से  बहुत ही प्यार से बातचीत की और उनसे  विद्यालय में विगत कुछ दिनों में हुए नए कार्यो से अवगत कराएं मैंने उनसे  कहा देखो मोहित ,बजरंगी और संदीप हम शिक्षक और विद्यालय के सभी बच्चे विभिन्न प्रकार के  सुंदर चित्र बनाकर एक खाली तेल के टीन वाले डब्बे पर चिपका कर एक कूड़ेदान का निर्माण किए है, अब सभी अपने फटे  कागज या विद्यालय के कूड़े को इस कूड़ेदान में डालते हैं और जब से में आया हूं बहुत सारे कार्यों को करने की सोचा हूं ,जिसमे तुम लोगों की  भी भागेदारी जरूरी है,इसके अलावा अब  किसी बच्चे की पिटाई भी नहीं हो रही है। मैंने सभी बच्चों से वर्ग कच्छ में ही पूछा -- क्या किसी की पिटाई होती है ?  सभी बच्चे ने एक स्वर में कहा ,नहीं ।मोहित और उसके साथी  प्रतिदिन विद्यालय आने के लिए वर्ग कक्ष में ही वादा किए  और अपनी खुशी जाहिर की मैंने सभी बच्चों से मोहित और उसके साथियों  के लिए जोरदार तालियां बजवाई और इस दौरान मोहित के पिता भी खुश हुए कुछ दिनों बाद अगले बाल संसद के पुनर्गठन में मोहित बाल संसद का सक्रिय सदस्य बना और वह और उसके साथी बजरंगी और संदीप  विद्यालय में अनुपस्थित भी नहीं हुए ।

सैयद जाबिर हुसैन
शिक्षक

Tuesday, April 21, 2020

बुढ़ऊ

शीर्षक -- बुढ़ऊ

मेरे गांव में उस बुजुर्ग आदमी को लोग बूढ़ऊ कहते हैं परंतु मैं उन्हें बुढ़ऊ कहने से बहुत संकोचता  था ।इसलिए कि गांव में बहुत से लोग बूढ़े हैं तो उन्हें  लोग बुढ़ऊ  क्यों नहीं कहते हैं इन्हें क्या गरीब जान कर कहते हैं। बताइए बूढा तो सबको होना है गांव के अन्य बूढों को लोग बाबा ,बड़का जी, बाबूजी, दादा, इत्यादि लहजे में बुलाते थे ,परंतु उस इकलौते शख्स को बुढ़ऊ कहना मुझे उचित नहीं लगता था ।
एक बार मैं गांव के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बुढ़ऊ को बुढ़ऊ कहकर बुलाते करीब से देखा और सुना तो यह एहसास हुआ कि बुढ़ऊ इस संबोधन से खुश रहते हैं ।
एक दिन मेरे पिताजी ने बुढ़ऊ को हमारे घर पर किसी काम से बुलाया तब मेरी भी बात उस दिन से उन से होने लगी मेरे पिताजी उन्हें गमहा  कहकर बुलाते थे तब मैंने पिताजी से गमहा  का अर्थ जाना " गमहा का मतलब -गांव का आदमी " पिताजी ने बताया तब मुझे एहसास हुआ कि कितना प्यार होता है संबोधन में !

 मेरे पिताजी अक्सर बचपन में मुझे यही सिखाया करते थे कि किसी को भी ,"जी ,,लगाकर बोलना है जैसे पापा जी ;मम्मी जी ;भैया जी; चाचा जी ;वह  तो हर किसी के नाम के आगे भी "जी "लगाकर कहने को कहते हैं इसके साथ ही अगर कोई बुलाए तो भी" हां जी "कहकर  हामी जताने की बात सिखाते हैं । शायद यही सीख मुझे बचपन में बुढ़ऊ को  बुढ़ऊ नहीं कहने देती थी ।परंतु प्यार का एक अलग ही एहसास होता है संबोधन में !जहां अपनत्व  और ममता होता  है वहां जी का संबोधन कई जगहों पर महत्वहीन हो जाता है। जैसे अम्मा रे ,माई रे, मम्मी रे ,इन्हीं प्यार के बीच शायद गांव के सभी बच्चे ,बड़े एवं बुजुर्ग  बुढ़ऊ को  सिर्फ  बुढ़ऊ पुकारा करते हैं।

 बुढ़ऊ की  भाषा भी बहुत ही प्यारी है अब उनसे जब मुलाकात होती है तो बात भी होती है।  बुढ़ऊ एक  कार्य के लिए पूरे गांव में प्रसिद्ध है वह यह की  किसी चीज की जानकारी पूरे गांव में देनी है तो वह बुढ़ऊ के  माध्यम से दी जाती है वह ऐसे की  बुढ़ऊ एक  ढोलक  लेकर पूरे गांव में ढोलक पीटते हुए उस बात को कहते हुए गांव में घूम जाते हैं । और उस ढोल की आवाज सुनकर सभी लोग उस सूचना को ध्यान से सुनते हैं और उस जानकारी से  अवगत कराते हैं जैसे कि अगर सभी ग्राम वासियों को गांव में नहर में पानी आने की सूचना देना हो तो बुढ़ऊ ढोलक लेकर शाम के समय यह जानकारी सभी ग्राम वासियों को देते हैं और अगली सुबह उस नहर को बांधने और सिंचाई कार्य करने का कार्य सभी ग्रामवासी मिलकर करते हैं यह बड़ों की जानकारी पहुंचाने की डुगडुगी विधि है ।
आज  के इस टेक्नोलॉजी के जमाने में बुढ़ऊ के इस डुग डुगी  विधि का लोग सहारा  लेते हैं।बुढ़ऊ की  प्रासंगिकता /उपयोगिता हमारे गांव के इतिहास में दर्ज करने हेतु मेरी कलम खुद को रोक नहीं  पाई ।।

लेखक

सैयद जाबिर हुसैन

संख्याओं की कहानी

--------------------------------------- कहानी किसे अच्छी नहीं  लगती , इसकी रोचकता किसी को भी अपने आप में बांधे रखती है।              अगर गणि...